Sunday, March 18, 2012

पसंद - 40 (लोग अभियोग लगाते हैं....)

यह  कविता विद्यालय के समय शायद हमारे हिंदी के आचार्य श्री सुमन जी ने सुनाई थी.. मुझे हमेशा से पसंद है...

लोग अभियोग लगाते हैं हमारे ऊपर
हमारे पाँव भटकते हैं गलत गलियों में
हो गई हैं हमारी मुट्ठियाँ बारूदी
आक्रोश ही पहना है हमने इन उँगलियों में

अब मजबूर करें सदी के इन भीष्मो को
वरना आक्रोश के स्वर और भी उभर आयेंगे
कहकहे बंद हुए यदि शीश महलों में
हम सरेआम बगावत पे उतर आयेंगे...


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