जब हम द्वादश (12th) के विद्यार्थी थे तबसे ये दो पंक्तियाँ बहुत पसंद हैं...
जब लगा देखने मानचित्र, भारत ना मिला तुमको पाया,
जब तुमको देखा, नैनों में, भारत का चित्र उभर आया॥
कुछ और -
नींव का पत्थर -
तप कर खरे निकलते हैं जो कहलाते हैं पत्थर,
दीवारों का बोझ, नींव की घुटन वही सहते,
किंतु मढ़ दिए कुछ नकली व्यक्तित्व जिन पर कन्नियों ने,
चढ़े शिखर पर और कंगूरे वही बनते हैं..
ये चार पंक्तियाँ नींव के पत्थर की घुटन दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। आजकल जाने कितने ऐसे नींव के पत्थर खरे होने के बावजूद गुमनामी के अंधेरे में दबे हैं और दुनिया और समाज कमजोर कंगूरों को सलाम करता फ़िर रहा है...
भारत के सबसे बड़े ज्योतिषी से मिलिए
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जी हाँ। आइये आपको मिलवाते हैं हमारे देश क्या शायद पूरे विश्व के सबसे बड़े
ज्योतिषी से ॥ ना ना , चोंकिये मत, सबसे बड़ा इसलिए कहा क्यूँकी शायद ही कोई
दूसरे ऐ...
15 years ago