Saturday, July 19, 2008

पसंद 17 (वीर तुम बढे चलो)

वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।

हाथ में ध्वजा रहे ,
बाल - दल सजा रहे ,
ध्वज कभी झुके नहीं ,
दल कभी रुके नहीं ।

वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।

सामने पहाड़ हो ,
सिंह की दहाड़ हो ,
तुम निडर हटो नहीं,
तुम निडर डटो वहीं ।

वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।

मेघ गरजते रहें
मेघ बरसते रहें
बिजलियाँ कड़क उठें
बिजलियाँ तड़क उठें

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

प्रात हो कि रात हो
संग हो ना साथ हो
सुर्या से बढे चलो
चंद्र से बढे चलो ।

वीर तुम बढे चलो
धीर तुम बढे चलो

-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

11 comments:

Anil Kumar said...

२१ साल पहले ये कविता पांचवीं कक्षा में पढ़ी थी! पुरानी यादें ताज़ा कर दीं आपने, अखिल!

Akhil said...

हाँ जी अनिल जी, यही सब तो हमारे बचपन की यादें हैं. जो साथ रहेंगी. और एक बात, ये उस समय की शिक्षा पद्धति की सफलता का भी उदाहरण है की हम लोगों को अभी तक ये सब कवितायें अभी तक जबानी याद हैं.. नही तो आज के किसी बच्चे से पूछिए, उनको उनकी कक्षा की ही कविता याद नही होगी..

Anonymous said...

nice poem akhil, urs collection is superb..

Anonymous said...

अखिल जी, ये कविता शायद शिशु मन्दिर की द्वितीय कक्षा में थी ना? धन्यवाद इतने वर्ष बाद स्मृतियाँ ताज़ा करवाने का...

गरिमा said...

बडे भईया आप तो मस्त क्लास हो.. मतलब इतनी पहले पढी कवितायें याद हैं, अब तक .. सो स्वीट :) मजा आ गया

महेन said...

लो जी। मतबल ये हैगा कि हम अभी इतने बूढ़े नहीं हुए हैं। आप लोगों ने भी यह कविता प्राईमरी में पढ़ी है और मैनें भी। ;-) और "लाला किस चक्की का खाते हो" भी। आभार बंधु ये टाट-पट्टी पर बैठने की यादें ताज़ा करने के लिये।
और अपन कहाँ लापता हैं यार। हम तो यहीं हैं। तीन में से किसी न किसी ब्लोग पर कोई न कोई पोस्ट करते रहते हैं। लगता है आप एक ही ब्लोगवा चैक करते हो।

अंकुर said...

अच्छी कविताये अब तो आपके ब्लॉग पर आकर ही पढने मिला करेगी ,क्योकि ये तो अभी इन्टरनेट की दुनिया से बहुत दूर हैं......अंकुर

Udan Tashtari said...

पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.

Anonymous said...

thanx ...itne saal baad mujhe mere bachpan ki yaad dilaane ke liye ..kya aap meri ek aur khoj ko pura kar denge..UDHO LAL AB AANKHEN KHOLO,PANI LAAYE HOON MUHN DHO LO" is kavita ko pls aap dhondh lijiye

Capt S B Tyagi said...

लगता है कि आज मेरा भाग्य सही चल रहा है . मैँ ‘वीर तुम बढे चलो’ कविता की खोज कर रहा था और जया की फर्माईश वाली कविता मुझे याद आ गयी -

उठो लाल अब आँखेँ खोलो,
पानी लायी हूँ मुँह धोलो ,
बीती रात कमल-दल फूले,
उनके ऊपर भँवरे झूले ,
चिडियाँ चहक उठीँ पेडोँ पर,
नभ मेँ छायी प्यारी लाली,
हवा बही सुख देने वाली ।

Unknown said...

उठो लाल अब आँखेँ खोलो,
पानी लायी हूँ मुँह धोलो ,
बीती रात कमल-दल फूले,
उनके ऊपर भँवरे झूले ,
चिडियाँ चहक उठीँ पेडोँ पर,
बहने लगी हवा अति सुंदर,
नभ मेँ न्यारि लाली छाई ,
फूल हसे कालिया मुसकाई