Saturday, September 25, 2010

पसंद 36 (क्षणिकाएं)

ये कुछ क्षणिकाएं मैंने बचपन में "कादम्बनी" में पढ़ी थींलेखक का नाम याद नहीं है.. आप भी आनंद लीजिये कम शब्दों में छिपी गहराई का...

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देख लेती हैं
जीवन के सपने
अंधी आँखे भी

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आखिरी युद्ध
लड़ना है अकेले
मौत के साथ

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कौन मानेगा
सबसे कठिन है
सरल होना

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पल भर को सही
तोडा तो जुगनू ने
रात का अहम्

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समुद्र नहीं,
परछाई खुद की
लाँघो तो जाने

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छाँव की नहीं,

ऊंचाइयों की होड़ है
यूकेलिप्टिसों में

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तुम ही बताओ
खुदा औ भ्रष्टाचार
कहाँ नहीं है

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धूल ढकेगी
पत्तों की हरीतिमा
कितने दिन

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10 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब, लाजबाब !

संजय भास्‍कर said...

बेहद ही खुबसूरत और मनमोहक…
आज पहली बार आना हुआ पर आना सफल हुआ बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति
बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

Akhil said...

धन्यवाद संजय जी.

Rahul Paliwal said...

beautiful dear. Keep sharing.

Asha Joglekar said...

बहुत ही सुंदर । शायद इसे ही हाइकू कहते हैं ।

Akhil said...

जी आशा जी, यही हाइकू कहलाती है..

Patali-The-Village said...

बहुत ही सुंदर ।

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...प्रभावशाली प्रस्तुति...

महेन्‍द्र वर्मा said...

प्रत्येक क्षणिका अपने आप में पूरा एक काव्य है।...शुभकामनाएं।

Akhil said...

धन्यवाद महेंद्र मिश्र जी और महेंद्र वर्मा जी..