मैं तुम्हारी मौन करूणा का सहारा चाहता हूँ
जनता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी
और यौवन में उभरती प्राण में है वायु कितनी
इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ
प्रश्न चिन्हों में उठी है भाग्य सागर की हिलोरें
आसुओं से रहित होंगी क्या नयन की नामित कोरें
जो तुम्हे कर दे द्रवित वह अश्रु धरा चाहता हूँ
मैं तुम्हारी मौन करूणा का सहारा चाहता हूँ
जोड़ कर कण-कण कृपण, आकाश ने तारे सजाये
जो की उज्जवल है सही, पर क्या किसी के काम आयें
प्राण, मैं तो मार्ग दर्शक एक तारा चाहता हूँ
मैं तुम्हारी मौन करूणा का सहारा चाहता हूँ
यह उठा कैसा प्रभंजन, जुड़ गयी जैसे दिशाएं
एक तरुणी एक नाविक और कितनी आपदाएं
क्या कहूँ मझधार में ही, मैं किनारा चाहता हूँ
मैं तुम्हारी मौन करूणा का सहारा चाहता हूँ ॥
कवि - डा राम कुमार वर्मा
भारत के सबसे बड़े ज्योतिषी से मिलिए
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जी हाँ। आइये आपको मिलवाते हैं हमारे देश क्या शायद पूरे विश्व के सबसे बड़े
ज्योतिषी से ॥ ना ना , चोंकिये मत, सबसे बड़ा इसलिए कहा क्यूँकी शायद ही कोई
दूसरे ऐ...
15 years ago
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