हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
- दुष्यंत कुमार
भारत के सबसे बड़े ज्योतिषी से मिलिए
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जी हाँ। आइये आपको मिलवाते हैं हमारे देश क्या शायद पूरे विश्व के सबसे बड़े
ज्योतिषी से ॥ ना ना , चोंकिये मत, सबसे बड़ा इसलिए कहा क्यूँकी शायद ही कोई
दूसरे ऐ...
15 years ago
3 comments:
दुष्यंत कुमार की रचना वाकई गजब की है।
आपके द्वारा की गयी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
अति सुन्दर बन्धु !
ईतनी अच्छी रचना पढ्वाने के लिये आपका तह - ए- दिल से शुक्रिया !
- रजनीश
दुष्यंत कुमार की रचनायें वाकई गजब की होती है। :)
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