Monday, June 2, 2008

पसंद - ४(आगत का स्वागत)

आगत का स्वागत

मुँह ढाँक कर सोने से बहुत अच्छा है,

कि उठो ज़रा
कमरे की गर्द को ही झाड़ लो।
शेल्फ़ में बिखरी किताबों का ढेर,
तनिक चुन दो।
छितरे-छितराए सब तिनकों को फेंको।
खिड़की के उढ़के हुए,
पल्लों को खोलो।
ज़रा हवा ही आए।
सब रौशन कर जाए।
... हाँ, अब ठीक
तनिक आहट से बैठो,
जाने किस क्षण कौन आ जाए।
खुली हुई फ़िज़ाँ में,
कोई गीत ही लहर जाए।
आहट में ऐसे प्रतीक्षातुर देख तुम्हें,
कोई फ़रिश्ता ही आ पड़े।
माँगने से जाने क्या दे जाए।
नहीं तो स्वर्ग से निर्वासित,
किसी अप्सरा को ही,
यहाँ आश्रय दीख पड़े।
खुले हुए द्वार से बड़ी संभावनाएँ हैं मित्र!
नहीं तो जाने क्या कौन,
दस्तक दे-देकर लौट जाएँगे।
सुनो,
किसी आगत की प्रतीक्षा में बैठना,
मुँह ढाँक कर सोने से बहुत बेहतर है।


- कीर्ति चौधरी

4 comments:

Amit K Sagar said...

bahut khubsurat...keep it up.
---with more wishes

ultateer.blogspot.com

Aruna Kapoor said...

बहुत सुंदर प्रस्तृति!

आशीष कुमार 'अंशु' said...

अखिल आपका ब्लॉग पसंद आया.

युं ही लिखते रहो,


शुभकामना

गरिमा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति :)