हिमाद्रि तुंग शृंग से
हिमाद्रि तुंग शृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वाला
स्वतंत्रता पुकारती
‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ
विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के-
रुको न शूर साहसी !
अराति सैन्य सिंधु में ,सुबाड़वाग्नि से चलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !
- जयशंकर प्रसाद
4 comments:
बहुत लम्बे इन्तेज़ार के बाद आखिर आपने ब्लोग पर काम सुरु कर ही दिया
हार्दिक बधाई मेरी तरफ से
हे हे.. मुझे याद है.. मैने जब पहली बार यह पढा था तो समझ मे ही नही आया था.. सर से काफ़ी डाँट पडी थी :P
जब समझ मे आया तो प्रेरणा का दीपक जला के आया।
मेरी पसंदीदा कविताओं में से एक। इससे पहले कि मैं इसे अपने ब्लोग पर डालता आपने प्रकाशित कर दिया। अच्छा है।
मुझे बहुत अच्छी लगी , बहुत प्रेरणादायक कविता है, धन्यवाद
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