- माखनलाल चतुर्वेदी
गहनों में गूंथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर, है हरि, डाला जाऊँ
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक।
2 comments:
बचपन में किसी कक्षा में पढी थी और आज भी याद है । आपने बचपन की याद दिला दी
माखनलाल चतुर्वेदी जी कि यह कविता तो हमेशा ही याद रहेगी.. इसे अपनी पसन्द मे शामिल करने के लिये शुक्रिया भईया ।
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